धान की खेती: धान की ये वैरायटी 3 महीने में हो जाती है तैयार! किसान इस तकनीक से करें बुवाई, 15% तक बढ़ेगी पैदावार
Paddy Cultivation: पारंपरिक धान की रोपाई की तुलना में डीएसआर तकनीक से किसानों को 7 से 10 दिन पहले फसल मिल जाती है, जिससे अगली फसल की समय से तैयारी करना संभव हो पाता है.
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Paddy Cultivation: खरीफ की फसल में धान की रोपाई शुरू हो चुकी है. धान की फसल में कई तरह की प्रजातियों के बीज आते हैं. कम समय में ज्यादा उत्पादन के लिए यूपी के किसान धान की 1692 प्रजाति पर भरोसा करते है. इस प्रजाति के दाम भी अच्छे मिलते हैं और फसल कम समय में तैयार भी हो जाती है. साथ ही, अगर किसान धान की सीधी बुवाई (DSR) करेंगे तो उनको डबल फायदा. इससे कम लागत में धान की बुवाई की जा सकती है.
धान की उगाई जाने की किस्में
उत्तर प्रदेश कृषि विभाग के मुताबिक, प्रदेश के अधिकतर किसान धान की फसल करते हैं. धान के बीज कई प्रजातियों में आते हैं. इनमें 1692, 1509, 1985, 1847, 1718, 120, सुगंध-5 समेत अन्य हैं. वैसे तो किसान इन सभी तरह की प्रजातियों को खरीदते हैं. इसमें कम समय में तैयार होने वाली प्रजातियां भी हैं. सुंगध-5, 1781 की फसल तैयार होने में 120 दिन लगते हैं, जबकि 1692 समेत अन्य में प्रजातियों की फसल 90 दिनों में तैयार हो जाती है.
इनमें धान की फसल के बाद आलू लगाने वाले किसान 1509 वैरायटी लेना पसंद करते हैं. लेकिन इन सब में सबसे ज्यादा 1692 का बीज लिया जाता है. ये प्रजाति किसानों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है.
DSR तकनीक से धान बुवाई करें किसान
उत्तर प्रदेश सरकार ने किसान से धान की सीधी बुवाई को अपनाने का आह्वान किया है. यह तकनीक कम लागत, कम पानी की खपत और पर्यावरण संरक्षण की नजर से बहुत लाभकारी है. धान की सीधी बुवाई से न केवल किसानों की मेहनत और समय बचेगा, बल्कि यह विधि जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना करने में भी सहायक सिद्ध होगी.
इस तकनीक से 7 से 10 दिन पहले मिलती है फसल
पारंपरिक धान की रोपाई की तुलना में डीएसआर तकनीक से किसानों को 7 से 10 दिन पहले फसल मिल जाती है, जिससे अगली फसल की समय से तैयारी करना संभव हो पाता है. धान की सीधी बुवाई से मीथेन जैसी हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में भी कमी आती है, जो पर्यावरण के लिए लाभकारी है.
धान की सीधी बुवाई की दो प्रमुख विधियां
सूखे खेत में बुवाई और तर-वतर (मॉइश्चर) बुवाई. सिंचित क्षेत्रों में तर-वतर विधि अधिक कारगकर है, जिसमें बुवाई से पहले पलेवा कर खेत को अच्छी तरह से तैयार किया जाता है. इस विधि में बुवाई के बाद पहली सिंचाई 15 से 21 दिन बाद करनी होती है, जिससे पानी की काफी बचत होती है और खरपतवार भी नियंत्रित रहते हैं.
वर्षा आधारित क्षेत्रों में भी सूखे खेत में मशीन से सीधे बुवाई की जा सकती है, लेकिन इन क्षेत्रों में फसल के महत्वपूर्ण अवस्थानों, जैसे पुष्पक्रम शुरू होने और दाना भरने के समय पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. चिकनी मिट्टी में सतही दरारें सिंचाई की जरूरत का संकेत होती हैं.
लेजर लैंड लेवलर से खेत को समतल करना जरूरी
धान की सीधी बुवाई के लिए खेत का भू-समतलीकरण बेहद जरूरी है. लेजर लैंड लेवलर का इस्तेमाल करके खेती समतल करना चाहित ताकि पानी की बचत और अच्छी पैदावार सुनिश्चित की जा सके. धान की बुवाई का उपयुक्त समय 20 मई से 30 जून तक है, जिसमें मानसून बेहतर है. किसान प्रमाणित और उपचारित बीजों का ही इस्तेमाल करें.
15% तक उत्पादन में होती है बढ़ोतरी
किसान भाइयों धान की सीधी बुवाई (DSR) से मृदा जैव कार्बन में 9% की बढ़ोतरी होती है, 25% से 30% कम पानी की जरूरत होती है. पौधों को पर्याप्त हवा और धूप मिलती है जिससे उत्पादन 10% से 15% की बढ़ोतरी होती है.

धान की सीधी बुवाई के फायदे
- मृदा जैव कार्बन में 9% की बढ़ोतरी.
- 25 से 30% कम जल की जरूरत.
- कम मेहनत की जरूरत.
- ऊर्जा व ईंधन की बचत.
- उत्पादन के कुल खर्चे में 3500 से 4000 रुपये की बचत.
- फसल की उपज में 10 से 15% की बढ़ोतरी.
- मृदा की भौतिक दशा में सुधार अगली फसल की पैदावार में 4 से 5% की बढ़ोतरी.
- फसल की परिपक्वता अवधि में 7 से 10 दिन की कमी.